गुरुवार, 20 मई 2021

Smart Classes Rajsamand

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सोमवार, 3 सितंबर 2018

बौंद्ध धर्म के सम्पुर्ण नोट्स

बौंद्ध धर्म के सम्पुर्ण नोट्स

हम आापके लिए लेके आए है.....
राजस्थान सामान्य ज्ञान व राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी सामान्य ज्ञान पुर्णतः विश्वसनिय एवं अधिकृत पुस्तकों से... 

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  • इस पोस्ट में हम आपके लिए लाए है बौंद्ध धर्म के सम्पुर्ण नोट्स वो भी केवल एक ही PDF File में
बौंद्ध धर्म के सम्पुर्ण नोट्स प्राप्त करने के लिए निचे दिये गए लिंक पर क्लीक करे......



मंगलवार, 25 जुलाई 2017

संविधान (Constitution) के सम्पुर्ण नोट्स

संविधान (Constitution) के सम्पुर्ण नोट्स

Constitution शब्द लैटिन भाषा का है जिसका अर्थ है -महत्वपूर्ण विधि 

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1. रेग्यूलेटिंग एक्ट -1773
भारतीय संविधान के विकास कि प्रक्रिया का प्रारंभिक चरण 21 जून 1773 को लागू किये गये रेग्यूलेटिंग एक्ट माना जाता है।
प्रावधान:-

  • बंगाल के गवर्नर को श्गवर्नर जनरलश्का नाम दिया गया ।
  • लार्ड वारेन हेस्टिंग्स बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
  • 1774 में फोर्ट विलियम (कलकता) में ऐपेक्स न्यायालय के रूप में उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई -प्रथम न्यायाधिश एलिजाह एम्पीथे ।
  • 1784 का इंडिया पिटस एक्ट -बोर्ड आॅफ कन्टोल की स्थापना



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2. चार्टर अधिनियम -1883 
प्रावधान:-

  • ब्ंागाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया 
  • भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैटिक थे।
  • कंपनी के व्यापारिक अधिकार समाप्त कर दिये गये।
  • विधि सदस्य को गवर्नर जनरल परिषद में शामिल किया गया 
  • लार्ड मैकाले प्रथम विधि सदस्य । 
  • मैकाले को आधुुनिक शिक्षा का जनक माना जाता है।

3. 1853 का चार्टर अधिनियम:-
प्रावधान:-

  • सम्पूर्ण भारत के लिए एक विधानमण्डल की स्थापना
  • विधायिका एवं प्रशासनिक कार्याे को अलग किया गया
  • सिविल सेवा में भारतीय नागरिकों के लिए भी खोल दी 
  • सिविल सेवको की भर्ती व चयन हेतु खुली प्रतियोगिता परीक्षा व्यवस्था का शुभारम्भ किया गया


4. भारत सरकार अधिनियम 1858:-
प्रावधान:-

  • कंपनी का शासन समाप्त कर भारत का शासन ब्रिटिश ताज के अधीन कर दिया गया
  • गवर्नर जनरल की जगह वायसराय  पद  का स्जन किया गया 
  • प्रथम वायसराय लार्ड कैनिंग बने
  • ब्रिटिस ताज शक्तियों का प्रयोग भारत सचिव करते थे
  • प्रथम भारत सचिव चाल्र्स वुड थे

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5. भारतीय परिषद अधिनियम 1861:-

प्रावधान:-

  • केन्द्र व प्रंातो में विधान परिषदो की स्थापना की गई
  • विभागीय प्र्रणाली(पोर्ट फोलियों व्यवस्था) को मान्यता मिली -इस प्रकार भारत में मंत्रीमण्ड़लीय व्यवस्था की नींव रखी गई 
  • कलकता ,बम्बई तथा मद्रास में उच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया गया

6. 1909 भारतीय परिषद अधिनियम (माले -मिण्टो सुधार)-
प्रावधान:-

  • मुसलमानो के लिए पृथक तथा साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली की शुरूआत 
  • केन्द्रीय एवं प्रान्तीय  विधान परिषद के आकार में वृद्वि हुई ।
  • प्रथम बार किसी गवर्नर परिषद में भारतीयो की नियुक्ति का प्रावधान किया गया -प्रथम भारतीय सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा विधि सदस्य बना ।

7. भारत शासन अधिनियम 1919 -(माण्टेग्यू -चैम्सफोर्ड सुधार )-
प्रावधान:-

  • प्रान्तो में द्वैधशासन प्रारंभ किया गया जिसके अनुसार समस्त प्रांतीय विषय को दो भागो मेे बांटा गया 
  • केन्द्रीय विधान मण्ड़ल में पहली बार दो सदन
    • 1. विधान सभा 
    • 2.राज्य परिषद बनायें गये 
  • प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था की गई ।
  • मुसलमानो के साथ सिक्ख ,ईसाई,आंग्ल -भारतीय के लिए भी पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की गई ।
  • लंदन में  भारत के उच्चायुक्त (High Commission of India) की नियुक्ति की गई।
  • लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया। प्रान्तो कि वैधशाला प्रणाली 1अपै्रल 1921 को आरंभ हुई।
  • इस अधिनियम को कांग्रेस ने निराशाजनक तथा असंतोषप्रद की संज्ञा दी।
  • तिलक ने इस अधिनियम को एक बिना सूरज वाला सवेरा बताया

8. भारत सरकार अधिनियम 1935:-
1अपे्रल 1935 को पारित हुआ -यह अधिनियम भारत में पूर्ण उतरदायी सरकार के गठन में मील का पत्थर साबित हुआ- इसमें 321 अनुच्छेद व 10अनुसुचिथी।      
प्रावधान:-

  • भारत में सर्वप्रथम संघीय शासन प्रणाली का प्रावधान किया गया जिसके तहत एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना की गई जिसमें दो इकाई थी-                     
    •  1. ब्रिटिश प्रंात          2. देशी रियासते 
  • शासकीय कार्यो को तीन भागों मे बांटा दिया -                                   
    • 1. संघसूची        2. राज्य सूची         3. समवर्ती सूची
  • प्रान्तो में द्वैधशासन व्यवस्था का अंत कर दिया गया किंतु  केन्द्र मे यह व्यवस्था थी-
  • बर्मा को भारत से अलग किया गया एवं उड़ीसा नया प्रंात बना -
  • R.B.I. तथा रेलवे प्राधिकरण की स्थापना की गई -
  • महाधिवक्ता एवं नियत्रंण एवं महालेखा परीक्षक की स्थापना की गई-
  • 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना दिल्ली में की गई -
  • साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार हुआ-
  • प. जवाहर लाल नेहरू ने इसे दासता का घोषणा पत्र तथा इंजन रहित मशीन कहाॅ है।
9. केबीनेट मिशन योजना -1946 
प्रावधान:-

  • 24 मार्च 1946 को भारत आया 
  • इसके अध्यक्ष लार्ड पैथिक लारेंस थे ।
  • इग्लैण्ड़ के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री (ऐटली लेबर प्रार्टी ) ने संवैधानिक सुधार एवं भारत को अतिशीघ्र स्वतंत्र करने की योजना हेतु भेजा -
  • केबीनेट मिशन के तहत जुुुुलाई 1946 में संविधान सभा हेतु चुनाव हुए -जिसमे 389 सदस्यो के चुनाव होने वाले थे
    • 292 ब्रिटिश प्रांत             
    • 4 चीफ कमिश्नर (दिल्ली,अजमेर,कुर्ग बलूचिस्तान)
    • 93 देशी रियासतो से 
  • नोट:-देशी रियासतो ने भाग नही लिये थे।  देशी रियासतो के अलावा 296 सदस्यो मेंसे 208 सदस्य क्रांग्रेस 73सदस्य मुस्लिम लीग चुने गये थे।

10. अंतरिम  सरकार का गठन:
प्रावधान:-

  • प. नेहरू के नेतृत्व में 2 सितम्बर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन हुआ 
  • एटली नेे 20 फरवरी 1947 को घोषणा की कि 1948से पहले भारतीय संता भारतीयो के हाथ में सौप दी जायेगी 
11. माउण्ट बेटन योजना -1947
इस योजना के तहत भारत -पाक विभाजन किया गया -यह अधिनियम 18 जुलाई 1947 को पारित हुआ -15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ तथा एक नये राष्ट्र पाकिस्तान का उदय हुआ -
    • भारत के अंतिम गवर्नर जनरल लार्ड माउण्ट बेटन थे                       
    • स्वतंत्र भारत के प्रथम एवं अंतिम गवर्नर जनरल सी. राज गोपालाचार्य थे

शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

राजस्थान में खारे पानी की झीले

राजस्थान में खारे पानी की झीले

सांभर (जयपुर)


सांभर झील

खारे पानी की सबसे बड़ी झील है। प्रर्वतक - वासुदेव चैहान ।
इसमें भारत के कुल नमक का 8प्रतिशत भाग उत्पादित होता है।
इसके नमक उत्पादन का कार्य हिन्दुस्तान साल्ट लि. कंपनी द्वारा किया जाता है, यह भारत सरकार का उपक्रम है।  

 

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डीडवाना (नागौर)

इस झील से नमक बनाने वाली संस्था को देवल कहते है।
सल्फेट की मात्रा अधिक होने की वजह के कारण यहाँ का नमक खाने योग्य नही है।

पचपदरा (बाड़मेर)

यहाँ उतम किस्म का नमक बनाया जाता है।
इसमें 98 प्रतिशत सोड़ियम क्लोराइट पाया जाता है।
इस झील में खारवाल जाति के लोग मोरेली झाड़ियो द्वारा नमक बनाते है।

अन्य झील:-

कावोद -    जैसलमेर
डेगाना, कुचामन - नागौर
तालछापर    - चुरू
रैवासा - सीकर
फलौदी - जोधपुर

शनिवार, 27 अगस्त 2016

RTDC की होटल

RTDC की होटल


Hotal Kajri in Udaipur

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  • जयपुर - गणगौर
  • अजमेर- खादिमे
  • जोधपुर- घुमर
  • उदयपुर- पणिहारी,कजरी
  • पाली- पणिहारी
  • भरतपुर- सारस
  • बीकानेर- ढोला मारू
  • जैसलमेर- मुमल
  • चितौड़गढ़ - पन्ना
  • कोटा - चंबल
  • पुष्कर - सरोवर 


राजस्थान की प्रमुख मीठे पानी की झीले - 2

राजस्थान की प्रमुख मीठे पानी की झीले - 2

पुष्कर झील

  • पुष्कर (अजमेर ) में स्थित प्राकृतिक झील।
  • इसमें कुल 52 घाट है।
  • सबसे बड़ा घाट महात्मा गाँधी घाट है जिसका निर्माण मैड़म मेरी ने करवाया जिसे मेरीघाट के नाम से जाना जाता है।
  • इसके किनारे विश्व प्रसिध ब्रह्मा मंदिर, सावित्री मंदिर, रंगनाथ मंदिर, गायत्री माता मंदिर, वराह मंदिर आदि स्थित हैै।
  • पुष्कर हिन्दुओ का पांचवा तीर्थ कहा जाता है।
 नक्की झील
  • यह माउण्ट आबू (सिरोही) में स्थित है।
  • राजस्थान की सर्वोच्च ऊँचाई पर स्थित झील है।
  • यह ज्वालामुखी निर्मित झील है।
  • राज्य की सबसे गहरी झील है।
  • किवदंती के अनुसार इसका निर्माण देवताओं द्वारा नाखुनो से किया गया है।
  • यह झील गरासियो का अमृत सरोवर कहलाती है।

 आनासागर झील

  • अजमेर में स्थित इस झील का निर्माण अर्णोराज ने करवाया।
  • इस झील के किनारे दौलत बाग (सुभाष उद्यान) तथा शाहजहां ने बारहदरी का निर्माण करवाया।
  • फॉय सागर
  • अजमेर में स्थित इस झील का निर्माण अकाल राहत कार्यो के दौरान अंग्रेज अधिकारी फॉय की देखरेख में करवाया गया।
  • इसमें बांड़ी नदी का जल एकत्र होता है।

सिलीसेढ़

  • अलवर में स्थित इस झील का निर्माण महाराजा विनय सिंह ने अपनी रानी शीला के लिए करवाया ।
  • इसके किनारे बने महलो में होटल लैक पैलेस चल रही है।

नवलखां झील

  • बूंदी में स्थित इस झील का निर्माण उदयसिंह ने करवाया ।
  • इस झील के किनारे वरूण देवता का आधा डूबा मंदिर स्थित है।

गैप सागर झील

  • डूंगरपुर में स्थित इस झील का निर्माण गोपीनाथ ने करवाया।
  • इसके किनारे उदय विलास महल, राजशेखर मंदिर, गोर्वधन मंदिर स्थित है।

पन्नालाल तालाब

  • झून्झनु में स्थित इस तालाब का निर्माण पन्नालाल ने करवाया।
  • खेतड़ी के महाराणा अजीत सिंह के निमंत्रण पर पधारे स्वामी विवेकांनद को इसी तालाब के किनारे बने महलो में ठहराया था।

 

अन्य झीले:-

स्वरूप सागर - उदयपुर
उदयसागर झील - उदयपुर
बालसंमद - जोधपुर
कायलाना - जोधपुर
गड़ सीसर तालाब - जैसलमेर
कोलायत, गजनेर - बीकानेर
दुगारी - बूंदी
चौपड़ा - पाली

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

राजस्थान की प्रमुख मीठे पानी की झीले - 1

राजस्थान की प्रमुख मीठे पानी की झीले - 1

जयसमंद (उदयपुर)

Jaisamand
  • महाराजा जयसिंह द्वारा गोमती नदी पर निर्मित मीठे पानी की राजस्थान की सबसे बड़ी तथा भारत व एशिया की दुसरी सबसे बड़ी कृत्रिम झील है ।
  • इसमें 7 टापु बने है, सबसे बड़ा टापु बाबा का भागड़ा एवं सबसे छोटा टापु -रामप्यारी हैै।
  • इस झील को ढेबर झील भी कहते है।
  • इस झील से दो नहरे श्यामपुरा व भाट निकाली गई है।


राजसमन्द झील

Rajsamand
  • सन् 1662 में महाराणा राजसिंह द्वारा निर्मित। इसमें गोमती नदी आकर गिरती है।
  • इसकी उतरी पाल को नौचैकी कहते है, इस झील पर संगमरमर के 25 शिलालेख है जिन पर राजसिंह द्वारा राजसिंह प्रशस्ति उत्कीर्णन करवाई गई जिसमें मेवाड़ का इतिहास संस्कृत में लिखा है। इसके रचयिता रणछोड़ दास भट्ट थें।
  • राज प्रशस्ति विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति है।
  • इस झील के किनारे घेवर माता का मंदिर स्थित है।


पीछोला झील

Pichhola
  • उदयपुर में महाराणा लाखा के शासन काल में एक बनजारे द्वारा इसका निमार्ण करवाया गया 
  • इसमें प्रसिद्ध  महल जगमंदिर, जगमहल बने है जहां पर शाहजँहा ने अपने विद्रोही दिनो में यहाँ शरण ली थी ।

फतहसागर झील

Fateh Sagar
  • उदयपुर में इसका निर्माण महाराणा जय सिंह द्वारा किया गया जिसे पुनर्निर्माण - फतह सिंह द्वारा करवाया गया।
  • इस झील की नींव ड्यूक आफॅ नाॅट द्वारा रखी गई । इसलिए इसे कनाॅट बांध भी कहते है।
  • इसमें एक सौर वैधशाला की स्थापना की गई है। जिस में भारत की सबसे बड़ी दुरबीन रखी गई है।

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शनिवार, 6 अगस्त 2016

राजस्थान में कृषि

राजस्थान में कृषि

  • राज्य के कूल कृषित क्षेत्रफल का 2/3 भाग खरीफ के मौसम में बोया जाता है। 
  • प्रदेश का 30 प्रतिशत भाग सिंचित है।
  • सर्वाधिक कृषि फसल -बाजरा
  • कूल कृषि क्षेत्रफल की सर्वाधिक कृषि -बाड़मेर  -न्यूनतम -राजसमंद
  • सर्वाधिक व्यर्थ भूमि - जैसलमेर - न्यूनतम -भरतपुर



राजस्थान में बोई जाने वाली फसलो के तीन  प्रकार है:- 

  • खरीफ - जुलाई में बोना तथा अक्टुम्बर में काटना -स्यालू भी कहते है। जैसे - कपास ,ज्वार,बाजरा, मक्का, मूंगफली, उडद, चावल, सोयाबिन, मूंग, मोठ आदि।
  • रबी - अक्टुम्बर में बोना तथा अप्रेल में काटना - उनालू भी कहते है। जैसे -गेहूँ,जौ,सरसो, चना, जीरा, मटर, मसूर, अफीम,अलसी ।
  • जायद-मार्च में बोना तथा जून में काटना -चैमास भी कहते है।जैसे - खरबूज, तरबूज, चारा, ककड़ी, फूल फसले ।

राजस्थान की प्रमुख फसले- 

अनाज

  • मक्का - क्षेत्रफल मे - उदयुपर  -उत्पादन मे चितौडगढ़
    • सर्वाधिक उत्पादक जिले -चितौड, उदयपुर, भीलवाडा, अजमेर, बाँसवाड़ा 
    • मक्का की किस्में -माही ,कंचन, माही धवल, सविता
  • बाजरा - क्षेत्रफल व उत्पादन में - बाडमेर
    • सर्वाधिक -बाडमेर, जैसलमेर, सीकर, नागौर, जालौर, बीकानेर, जयपुर आदि।
  • ज्वार - क्षेत्रफल व उत्पादन में -अजमेर
    • सर्वाधिक -अजमेर, कोटा, बूँदी, बांरा, झालावाड़
  • चावल- क्षेत्रफल -बाँसवाड़ा -उत्पादन - हनुमानगढ़
    • किस्में -रत्ना, माही सुगंधा, चबंल, जया 
    • सर्वाधिक -हनुमानगढ, बाँसवाडा, डूंगरपुर, चितौड़, कोटा
  • गेहूँ -क्षेत्रफल -हनुमानगढ -उत्पादन -गंगानगर
    • गंगानगर को अन्न का कटोरा कहा जाता है।
    • सर्वाधिक -गंगानगर, जयपुर, अलपर, हनुमानगढ़, उदयपुर, चितौडगढ
  • जौ -क्षेत्रफल  व उत्पादन -जयपुर
    • सर्वाधिक -जयपुर, दौसा, अलवर

कुल अनाज -सर्वाधिक बाडमेर, अलवर

प्रमुख फलो का उत्पादन

  • आम- बाँसवाड़ा, चितौड़
  • नींबू -भरतपुर
  • संतरा - झालावाड़
  • नाशपति -जयपुर
  • चीकू - सिरोही
  • केला - बाँसवाड़ा
  • माल्टा ,मौसमी कीनू, अंगूर - गंगानगर
  • सीताफल -राजसमन्द
  • पपीता -बूंदी

कुल फलो का सर्वाधिक उत्पादन -गंगानगर

प्रमुख मसाले उत्पादक जिले
  • लाल मिर्च - जोधपुर,सवाई माधोपुर
  • हल्दी- उदयपुर
  • अदरक - राजसमंद
  • धनिया - बांरा
  • जीरा - जालौर
  • हरिमैथी - नागौर
  • लहसून - बांरा
  • टमाटर - जयपुर
  • मैथी - सीकर
  • प्याज -जोधपुर
कुल  मसाला सर्वाधिक उत्पादन  -बांरा

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

राजस्थान में पर्यटन विकास

राजस्थान में पर्यटन विकास

राजस्थान राज्य में पर्यटन को उद्योग का दर्जा युनिस खान समिति द्वारा 1989 में दिया गया ।

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पर्यटन सहायता बल -पर्यटन पुलिस कि स्थापना 1 अगस्त 2000 से 
पर्यटन विकास निगम की आर टी डी सी की स्थापना -1 अप्रेल 1979 में 
वर्तमान में राजस्थान में पर्यटक सक्रिट - 12 सक्रिट है:-

  1. ढूढ़ाड़ सक्रिट - जयपुर, आमेर,सामोद, रामगढ़,दौसा ,आभानेरी
  2. अलवर -सक्रिट -अलवर , सरिस्का ,सिलीसेढ़
  3. भरतपुर सक्रिट  -भरतपुर ,डीगा ,धौलपुर
  4. रणथम्भौर सक्रिट -रणथम्भौर -टोंक
  5. माउण्ट आबू सक्रिट - रणकपुर ,जालौर
  6. मेरवाड़ा सक्रिट -अजमेर,पुष्कर,मेड़ता नागौर 
  7. शेखावाटी  सक्रिट -सीकर -चुरू -झुन्झनु
  8. मरू त्रिकोण -जोधपुर - बीकानेर -जैसलमेर , बाड़मेर
  9. मेवाड़ सक्रिट - उदयपुर, कुंभलगढ़, नाथृद्वारा, चितौड़गढ़, राजसमन्द, डूँगरपुर
  10. हाडोती सक्रिट -कोटा ,बूँदी,झालावाड़
  11. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र - अलवर, भरतपुर, बैराठ,धौलपुर
  12. तीर्थ सक्रिट - पुष्कर,नाथद्वारा ,महावीर जी 


राजस्थान में फसलों मे होने वाले रोग

राजस्थान में फसलों मे होने वाले रोग

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मक्का - ब्राउन स्पाँट रोग- फंफूदी

गन्ना - पायरीला कीड़ा
तबांकू - मोजेक रोग
नीबूं - केकंर -खर्रा रोग
ज्वार - तुलासिता रोग,आवृत कुण्डुआ
गेहूँ - रोली,रतबा,करजवा,किटट रोग,टुण्डु रोग ,मोल्या आदि।
चावल - पती चकता ,कण्डुआ रोग
बाजरा - अरगढ रोग
जौ -मौल्या रोग,कछुआ रोग
कपास- विगलन रोग,बाल विविल कीड़ा रोग
मूंगफली - टिक्का रोग

राजस्थान में विभिन्न कृषि क्रांतियां

राजस्थान में विभिन्न कृषि क्रांतियां


हरित क्रान्ति की शुरूआत राज्य में -1966-67 में हुई । पवर्तक - स्वामीनाथन
नीली क्रान्ति - मत्स्य उत्पादन
रजत क्रान्ति - अण्ड़ा उत्पादन
हरित क्रान्ति -खाद्यान उत्पादन
स्वर्ण क्रान्ति -फल ,बागवानी
स्वेत क्रान्ति - दुग्ध उत्पदान
भूरी क्रान्ति -खाद्यान्न प्रसंकरण
पीली क्रान्ति -तिलहन
गोल क्रान्ति-आलू उत्पादन
लाल क्रान्ति - टमाटर उत्पादन
गुलाबी क्रान्ति -झींगा मछली
इन्द्र धनुष क्रान्ति -उपयुक्त सभी क्रान्तियों  का सम्मिलिम रूप ।

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

राजस्थान के प्रमुख नवलखां

राजस्थान के प्रमुख नवलखां


बावड़ी - डूंगरपुर
स्तम्भ - चितौड
महल - उदयपुर
झील - बूंदी
मंदिर - पाली
दरवाजा - रणथम्भौर
किला - झालावाड़




नवलखा महल उदयपुर 

प्रमुख व्यक्तियों के उपनाम

प्रमुख व्यक्तियों के उपनाम


  • मेवाड़ के गाॅधी:-माणिक्य लाल वर्मा 
  • गाॅधी जी के 5वे पुत्र:- जमना लाल बजाज 
  • हाड़ी रानी:- सहल कंवर
  • जोधपुर की नूरजॅहा:- गुलाबराय
  • राठौड़ो का यूलीसेज:- दुर्गादास राठौड़
  • राज. की जीजाबाई:- जयवंता बाई
  • भारतीय मोनालिसा:- बणी -ठणी
  • राज.का कबीर:- दादू दयाल
  • राज. की जीजाबाई:- जयवंता बाई
  • भारतीय मोनालिसा:- बणी -ठणी
  • राज.का कबीर:- दादू दयाल
  • राज. का नेहरू:- पं.जुगल किशोर चतुर्वेदी (भरतपुर) 
  • राज. का नृसिंह:- कवि दुर्लभ (डुगंरपुर)
  • ड़िगल का हैरोज:- पृथ्वीराज राठोड़
  • शिक्षा संत:- केशवानंद
  • पत्रकारिता के भीष्म पितामह:- झाबरमल शर्मा
  • रायपिथौरा:- पृथ्वीराज चैहान
  • राज.के गाॅधी:- गोकुल भाई भट्ट
  • वागड़ के गाॅधी:-भोगीलाल पंड़या
  • मारवाड़ के गाॅधी:- जयनारायण व्यास ,अशोक गहलोत
  • पाथल:- महाराण प्रताप
  • पीथल:- पृथ्वीराज राठौड़
  • रूठी रानी:- उमादे
  • हाड़ी रानी:- सहल कंवर
  • जोधपुर की नूरजॅहा:- गुलाबराय
  • राठौड़ो का यूलीसेज:- दुर्गादास राठौड़

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प्रमुख स्थानों के उपनाम


प्रमुख स्थानों के उपनाम



  1. राजस्थान का मिनी खजुराहो,हाड़ौती का खजुराहो:- भण्ड़देवरा (बांरा)
  2. मेंवाड़ का खजुराहो:- जगत (उदयपुर)
  3. राज.का ताजमहल:- जसवंत थड़ा  (जोधपुर)
  4. राज. का भुवनेश्वर ,उपकेसपटन - ओसिया (जोधपुर)
  5. राजस्थान का खजुराहो:- किराडू (बाड़मेर)
  6. राज. का पंजाब:-सांचैर (जालौर)
  7. तीर्थो का मामा ,घाटो का शहर ,गुलाबों की नगरी:- पुष्कर (अजमेर)
  8. तीर्थो का भांजा:-मचकुण्ड़ (धौलपुर)
  9. राज.की अणुनगरी:- रावतभाटा(चितौड़)
  10. राज. का शक्तिधाम:- पोकरण (जैसलमेर)
  11. राज.की ऐलौरा:- कालवी गुफाएं (झालावाड़)
  12. राज. का लघु माउण्ड आबू:- पीपलोद (बाड़मेर)


बुधवार, 3 अगस्त 2016

प्रमुख जिलो के उपनाम

प्रमुख जिलो के उपनाम 


  1. अजमेर:- अजयमेरू - भारत का मक्का, राज. का हदय ,जिबा्रल्टर राजपूताने की कुंजी, ख्वाजा साहब नगरी, घड़ियों का शहर
  2. जयपुर:-  ढुढाड़, विराट नगर, गुलाबी नगरी, राज.का पेरिस, राज.का काशी, रंग श्री द्वीप, रत्न एवं पन्ना नगरी 
  3. उदयपुर:- पूर्व का वेनिस, सैलानियों का स्वर्ग, झीलो की नगरी, राज. का कश्मीर, मेदपाट, मेंवाड़, मांउटेन-फांउटेन का शहर
  4. कोटा:- राज. का कानपुर, ओधोगिक नगरी, उधानों का शहर, वर्तमान नालंदा, शिक्षा का तीर्थ स्थल
  5. जोधपुर:- मारवाड़, सूर्यनगरी, किलो का शहर, मरूस्थल का प्रवेश द्वार ,ब्लू सिटी, आफताब -ए-शहर 
  6. सिरोही:- आर्बुद प्रदेश , देवनगरी, चन्द्रनगरी, शिवपुरी
  7. जालौर:- जाबलिपुर, ग्रेनाइट सिटी ,सुवर्ण नगरी
  8. अलवर:- राज. का सिंहद्वार, राज.का स्काॅटलैण्ड़, पूर्वी राज. का कश्मीर, राज. का वृदावन।
  9. बीकानेर:- जांगल प्रदेश, ऊन का घर, राती - घाटी 
  10. बुंदी:- बावड़ियों का शहर, छोटी काशी
  11. भीलवाडा:- राज. का मेेनचेस्टर, टेक्सटाइल सिटी, अभ्रक नगरी
  12. डुंगरपुर:- पहाड़ो की नगरी
  13. बारां :- वराह नगरी
  14. टोंक:-नवाबों का शहर
  15. गंगानगर:- अन्न का कटोरा
  16. भरतपुर:-राज. का प्रवेश द्वार
  17. झालावाड:- राज. का नागपुर
  18. करौली:- गोपाल पाल, डांग की रानी
  19. नागौर:- धातु नगरी, अहिछत्रपुर 
  20. बाॅसवाड़ा:- सौ द्वीपों का शहर, राज. की चेरापुंजी, आदिवासियों का शहर
  21. धौलपुर:- रेड़ डायमंड़, कोठी
  22. चितौडगढ़:- राज. का गौरव ,खिजा्रबाद ,चित्रकूट
  23. जैसलमेर:- मांड़ स्वर्ण नगरी, राज. का अंड़मान-निकोबार, रेगिस्तान का गुलाब ,हवेलियो का शहर, गलियों का शहर
  24. हनुमानगढ:- भटनेर
  25. बाड़मेर:- मालाणी
  26. प्रतापगढ़:-कांठल
  27. राजसंमद:- सीताफल नगरी



राजस्थान के संभाग


    राजस्थान के संभाग

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    1. जयपुर - जयपुर, अलवर, दौसा, सीकर,झुन्झनू :- (5 जिले ) सर्वाधिक जनसंख्या वाला
    2. जोधपुर -जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेंर, जालौर, सिरोही, पाली:-  (6 जिले )सर्वाधिक क्षैत्रफल वाले 
    3. उदयपुर - उदयपुर, राजसमन्द, प्रतापगढ़, बाॅसवाड़ा, डुगंरपुर, चितौड़  - (6 जिले ) सर्वाधिक लिंगानुपात वाला   
    4. बीकानेर - गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, (चुरू - 4जिले )न्यूनतम नदी वाला    
    5. अजमेर - अजमेर, नागौर, भीलवाड़ा, टोंक - (4 जिले )मध्यवर्ती संभाग  
    6. कोटा - कोटा, बूंदी, बांरा, झालावाड़ - (4 जिले )सर्वाधिक नदियों वाला  -जिला -चितौड़गढ़    
    7. भरतपुर - भरतपुर, करौली, सवाई माधोपुर, धौलपुर  - (4 जिले ) न्युनतम क्षैत्रफल वाले             

    सोमवार, 1 अगस्त 2016

    Important Links for Govt. Jobs In Rajasthan

    Important Links for Govt. Jobs In Rajasthan


    इन ऑनलाइन पोर्टल पर आप राजस्थान सरकार द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं की जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते है

    RPSC:-

    RPSC Official Website

    RSMSSB:-

    Rajasthan Subordinate and Ministerial Services Selection Board, Jaipur

    EMITRA:-
    Emitra Vacancies Portal

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    गुरुवार, 19 नवंबर 2015

    Rajasthan GK notes in Hindi!!

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    शनिवार, 14 नवंबर 2015

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    मंगलवार, 20 अगस्त 2013

    acharya tulsi



    The King Of Heart





     इस संसार में सुपरमैन बन कर कोर्इ भी मनुष्य जन्म नहीं लेता, बलिक अपनी बौद्धिक क्षमता, वैचारिक बल एंव प्रबल साहस से किसी भी मुकाम को हासिल कर सकता है। केवल मान्यताओं, परम्पराओं तथा आदर्शों की लकीर पर चलकर नये पदचिन्ह अंकित नहीं किये जा सकते। उसके लिए चाहिये साहस की पराकाष्ठा, जिसके जरिये उन्नत लक्ष्य प्राप्त करने हेतु आकाशीय उड़ान भरीजा सकती है। 'साहस वह बेहतरीन मानसिक औषधि है, जो आशा का संचार कर विश्वास को मुखर बना सकती है। वक्त के भाल पर अमिट निशान बनाते हुए प्रकाश स्तम्भ की तरह मार्ग प्रशस्त करने वाला टानिक साहस ही तो है। साहसी इंसान के शब्दकोश में 'असंभव शब्द नहीं होता! इतिहास गवाह है कि नेपोलियन बोनापार्ट के सैनिकों ने एल्प्स के बर्फीले पहाड़ो की दुर्गम चोटियों को इसीबल से लांघा था। राम की वानर सेना ने सागर पर पुल बना रावण को परास्त किया था। वास्तव में 'साहस वह आन्तरिक शकित है, जो नये दर्शन और चिंतन द्वारा इंसान को बुलनिदयों तक पहँुचा देती है।
                         महानता के शिखर पुरूषों की श्रृंखला में अध्यात्म-जगत को गौरवानिवत करने पाले एक युगपुरूष का नाम है - आचार्य तुलसी। जिन्होंने अपनी साहसिक चेतना से अवसर को पहचान कर युग को वो तोहफे दिये, जिन्हें किसी भौतिक पदार्थों से आंका नहीं जा सकता। उन्होंने आत्मदर्पण में झांक कर युगीत समस्याओं को निहारा और उन्हें अवदानों द्वारा समाहित कर दुनिया का उद्धार किया। पुरूषार्थ में दृढ़आस्था, चरणों में गतिशीलता एवं चरित्र की उज्ज्वलता ने उन्हें साहस का सुमेरू बना दिया। यही कारण था कि उन्होंने अपने अमाप्य साहस, अतुल मनोबल एवं प्रगाढ़ आत्मविश्वास से अनेक अमर पगडंडियों का सृजन कर दिया, जिन पर चलकर मानव मात्र को युगों-युगों तक त्राण मिलता रहेगा! इतिहास साक्षी है कि वह महापुरूष कभी थमा नहीं, रुका नहीं, अपितु नित नर्इ कल्पनाओं तथा उध्र्वमुखी चिंतन को मूत्र्त रुप देने हेतु जीवन पर्यंत जुटा रहा।
                                साहसी व्यकितत्व उम्र का मोहताज नहीं होता, इसे चरितार्थ किया आचार्य श्री तुलसी ने। मात्र ग्यारह वर्ष की अल्पायु में कठोर साधना के मार्ग को अंगीकरण किया। इससे पूर्व संयम जीवन को मूत्र्त रुप देने हेतु दो भीषण प्रतिज्ञाएं स्वीकार करना, साहस की पराकाष्ठा ही कहा जा सकता है। प्रतिज्ञाएं थी- 1. मैं आजीवन व्यापारार्थ प्रदेश नहीं जाऊगां। 2. मैं विवाह के बंधन से मुक्त रहुंगा। यह कल्पना से बाहर की बात है कि एक ग्यारह वर्ष का बालक जीवन भर के लिए ऐसे कठोर संकल्पों को स्वीकार करे। वास्तव में यह साहस भरा जादूर्इ करिश्मा ही था। 'साहस कोर्इ आकाश से टपकने वाला रस नहीं, भीतर से उदभूत सकारात्मक ऊर्जा है। जिसने उसका उपयोग किया, वह देवतुल्य पूजनीय बन गया। आचार्य श्री तुलसी इसके मूत्र्त रुप थे। तेरापंथ धर्मसंघ के नवम अधिशास्ता ने अपने क्रांतिकारी कदमोें से संपूर्ण भारत की यात्रा की। जन-जन से संपर्क कर ज्ञान का प्रकाश बांटा। यही वह मसीहा थे, जिन्होंने अपने जीवन के अनमोल पलों को समषिट के लिए समर्पित कर दिया। यही कारण था कि श्रम, साधना, शिक्षा, कल, सेवा, जनसंपर्क एवं कुशल व्यकितत्वों का निर्माण करना उनके जीवन का पर्याय रहा।
    आचार्य तुलसी की बेजोड़ कार्यक्षमता और आत्मविश्वास से सरजें कार्यों को देख-सुनकर लोगों ने दाँतों तले अंगुली दबार्इ। यह सत्य है कि उन्होंने स्वयं की शकित को मात्र पहचाना ही नहीं, उसका भरपूर उपयोग भी किया। विविध अवदानों को दुनियां के समक्ष प्रस्तुत कर मार्ग प्रशस्त किया। उनकी जीवन यात्रा के महत्त्वपूर्ण पड़ाव, जो साहस की गाथा का व्याख्यान करते नजर आते हैं। मात्र सोलह वर्ष की उम्र में अपने गुरू कालूगणी का इतना विश्वास अर्जित किया, कि प्रशिक्षक बना दिया। बार्इस वर्ष में तेरापंथ धर्म संघ के अनुशास्ता बने। आचार्य प्रवर का प्रथम चातुर्मास बीकानेर में सम्पन्न हुआ। मंगल विहार में जन-सैलाब उमड़ पड़ा। अचानक अन्य सम्प्रदाय का जुलूस सामने से आता देख आचार्य श्री तुलसी ने तत्काल निर्णय लेते हुए रास्ता छोड़ दिया। अघटित घटनाटल गर्इ। हालांकि लोगों में खलबली मची। हम क्यों हटें? आवाजें आर्इ। पर साहस के पुजारी ने शांति स्थापित करने हेतु रांगड़ी-चौक की तरफ अपने कदम बढ़ा दिये। सभी ने अनुसरण किया। तत्कालीन बीकानेर के महाराजा गंगासिंह आचार्य श्री की प्रत्युत्पन्न मेधा एवं निर्णायक क्षमता के सम्मुख नत हो गये। तभी तो कवि का स्वर मुखर हो उठा-
    'डर की क्या बात पथिक काली रातों में,
    पथ में उजियाला होगा लो दीपक हाथों में।
    दुनियां के दीपक धोखा दे सकते हैं मगर,
    साहस का दीपक जलता है झंझावातों में।
    अणुव्रत-अनुशास्ता का अधिकतम जीवन संघर्षों से भरा रोमांचित रहा। सत्य का दामन हो जिसके साथ में, भला विरोध, निराशा और कठिनार्इयां उसका बिगाड़ भी क्या सकते हैं? यही कारण था कि भय और शंका उस अमृत पुरुष के सम्मुख ठहर नहीं पाये। बिना साहस के छोटी सी यात्रा भी दुरुह प्रतीत होती है, जबकि गणाधिपति गुरूदेव तुलसी ने अपने जीवन के 83 बसंत को जीवंत जीया। प्रस्तुत उदाहरण कमजोेर मानसिकता में छिपा भय का निदर्शन करता है। एक वृद्ध महिला पहली दफा हवार्इ-यात्रा हेतु एयरपोर्ट पहुँची। जहाज पर चढ़ी। वह घबरा रही थी, काँप रही थी। एयरहोस्टेज ने उसकी मन:सिथति को पढ़ा और बुढि़या के भय को दूर करने के लिए उसके पास बैठ गर्इ। उसका सिर अपने ह्रदय से तब तक लगाये रखा, जब तक जहाज पूरी तरह से ऊपर न उठ गया। धक्के आने बंद हो गये। इंजन संगीतमय ध्वनी से चलने लगा। तब एयरहोस्टेज उठी। मजे की बात यह है कि डरपोक बुढि़या ने जाते वक्त उसे कहा- बेटी! ज्ब तुम्हें फिर से डर लगे, तो वापिस मेरे पास आ जाना। एयरहोस्टेज बुढि़या की नादानी पर मुस्कुरा दी। बहुत फर्क है साहसी बताने और साहसी होने में। गुरुदेव तुलसी का जीवन साहस का प्रतिमास नहीं, प्रत्युत देदीप्यमान सूर्य था।
                         विलक्षण व्यकितत्व व दृषिटकोण की व्यापकता ने उन्हें शिखर पर पहुँचा दिया। विरोधों की आंधियों में साहस का दीप जलता रहा। गहन अन्तर दर्शन ने उनके विश्वास को खंडित नहीं होने दिया। साहस के बिना विकास का प्रकाश धूमिल हो सकता था, लेकिन आत्म-निरिक्षण एवं आत्मालोचन जैसी इमरजेंसी लार्इटों की उनके पास भरमार थी। फलस्वरुप नर्इ संभावनाओं को पनपने का अवसर बहुत मिला। बात उन दिनों की है, जब आचार्य तुलसी पैदल यात्रा के दौरान इलाहबाद में प्रवचन कर रहे थे। जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने जाति-पांति के उस युग में संतों की भिक्षा-विधि की चर्चा करते हुए कहा- यदि हमें किसी भी जाति के घर में शुद्ध भिक्षा मिले, हम ले सकते हैं। दिगम्बर आम्नाय के न्यायाचार्य महेन्द्र जैन, जो उस परिषद में बैठे प्रवचन सुन रहे थे, उन्होंने कहा- आचार्य जी। आज मैं जिंदगी में पहली दफा किसी जैन आचार्य को नमस्कार करता हंू। ऐसी प्रस्तुति देने का साहस सचमुच महानता का प्रतीक है।
                   सन 1959 कोलकाता में आचार्य श्री तुलसी ने अपने प्रौढ़ चिंतन से सामाजिक बुुरार्इयों के खिलाफ बीड़ा उठाया। बाल-विवाह, अस्पृश्यता निवारण, दहेज प्रथा, वृद्ध-विवाह जैसी ज्वलंत समस्याओं को रोकने की अनिवार्यता समझ उन्होंनें कहा था - ''अवरोध चाहे कितने भी आये, हम डरेंगे नहीं। एक बार अस्पृश्य निवारण करने के लिए हरिजन सम्मेलन का वृहद आयोजन आचार्य तुलसी के सानिनध्य में रखा गया। अधूतों  के प्रति विरोध की उछलती स्फुलिंगों ने उन्हें झकझोर दिया। जन-चेतना को उस समय सम्बोधित करते हुए आचार्य तुलसी ने कहा था - ''यदि मुझे ठहराना है। मेरा प्रवचन करवाना है तो हर कौम के आदमी को आने की, प्रवचन सुनने की छूट रहेगी। अन्यथा मैं प्रवचन नहीं करुंगा। यह बात सुन जनता स्तब्ध रह गर्इ। प्रखर चिंतन एवं साहस की प्रचुरता ही थी कि बिना परवाह किये उन्होंने अपने पाँव(चरण) हरिजन भार्इयों को स्पर्श करने के लिए आगे कर दिये। सभी हरिजनों ने धन्यता का अनुभव किया। लोग देखते ही रह गये।
                         वि. स. 2007 में संघ-बद्ध साधना करते हुए आचार्य तुलसी ने नवीनता और प्राचीनता के बीच सामंजस्य स्थापित हो, इसके लिए अनेक निर्णयों को क्रियानिवत किया। परिणामत: आन्तरिक विरोध चरम पर पहुँच गया। इतना कुछ होने पर भी उन्होंने अपने कार्यक्रमों को निर्धारित रख कार्यों को संपादित किया। उस प्रसंग में गुरुदेव तुलसी के शब्द निम्न रुप से मुखर हुए- ''यदि हममें साहस नहीं होता, तो निर्धारित कार्य स्थगित हो जाते। मैं कभी चिंता नहीं करता, क्योंकि भगवान महावीर का अनेकांत दर्शन मेरे साथ हैं। आचार्य तुलसी के पुरुषार्थ और भगीरथ चिंतन ने तेरापंथ संघ में ऐसे क्षितिज खोले जिससे जैन धर्म को नर्इ पहचान दी। पूरी तटस्थता से जैन आगमों के सम्पादन का साहसिक व एतिहासिक निर्णय लिया, जो युग का अमिट आलेख बन गया। विलक्षण दीक्षा समण श्रेणी का उदभव कर जैन धर्म को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दी। मौलिकता को अक्षुण्ण रखते हुए अनेक नर्इ रेखाओं का निमार्ण किया।
                         भारत सरकार में उत्पन्न संसदीय गतिरोध को समाप्त करने में आचार्य तुलसी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। राजीव-लोंगोवाल के एतिहासिक पंजाब समझौते ने बहुत बड़ी हिंसा को टाल दिया था। यह सब उनके सामयिक-साहसिक चिंतन से ही फलीभूत हो सका था। रायपुर चातुर्मास के अवसर पर 'अगिन परीक्षा पुस्तक को लेकर हिंसामय वातावरण जोर पकड़ रहा था, इसे मद्देनजर रखते हुए आचार्य प्रवर ने देवउठनी ग्यारस को ही विहार करना पड़ा। पत्रकारों ने घेराव कर आचार्य श्री से पूछा - जैनो का चातुर्मास तो पूर्णिमा को समाप्त होता है, फिर ग्यारस को विहार क्यों? आचार्य तुलसी ने कहा - हम तो समन्वयवादी है! स्पष्ट और साहस भरे उत्तर को सुनकर सभी प्रभावित एवं नतमस्तक हो गये। जीवन का कोर्इ भी मोड़ ऐसा नही था, जिसमें साहस के पदचिन्ह दिखार्इ नहीं दिये। अनितम समय से पूर्व 18 फरवरी 1994 में आचार्य तुलसी ने स्वेच्छा से अपने आचार्य पद का विसर्जन कर नये इतिहास का सृजन किया। इस साहस भरी उदघोषणा से सारा विश्व विसिमत रह गया।
                         अस्तु! जीवन में उतार-चढ़ाव जैसी विषमताएं न आये, नामुमकिन है। लेकिन वैसे झंझावातों में साहस का दीया जल जाये, तो अंधेरा टिक नहीं सकता। संकल्प शकित एवं समर्पण बल के सामने लक्ष्य में कामयाबी अवश्य मिलती है। जिंदगी जिंदादिली बन सफलता दिलाएं, सब चाहते हैं। पर हकीकत कुछ ओर होती है! सकारात्मक विचारशैली, साहस, उत्साह और आत्मविश्वास ऊर्जा का वह स्रोत है, जो हर कदम पर विजय दिलाता है। आचार्य श्री तुलसी उपयर्ुक्त गुणों के दस्तावेज थे! जिनके हर कदम, हर वाक्य, हर गतिविधि में साहस प्रत्यक्ष दिखार्इ देता था। हर विचार पौरुष की कहानी गढ़ता था। तभी तो कहा है-
         ''हारे नहीं हौंसले, तो कम हुए फासलें।
         काम करने के लिए, मौसम नहीं मन चाहिये।।